जाना
पर जाना तू भी तो कुछ कम नहीं
बात बात पर मुझसे लड़ जाना
मुंह बना घर से बिन बोले निकल जाना
जानते हो तुम्हारे जाने से कितना डरती हूं
एक सेकेंड के लिए भी दरवाजे के आगे से नहीं हटती
बस जल्दी से घर आ जाओ ना
मुझसे गुस्सा हो तो मेरे संग है उसे मुझ पर उतारो
नहीं देती मैं किसी और को मेरे अलावा हक
के तुम्हारे गुस्से तक का भी कोई हकदार बने
मना लूंगी तुझे थोड़ा वक्त लगता है
कोई छीन ना ले तुझे सोच डर लगता है
तेरे घर वापस आने तक ना जाने
किन किन ख्यालों से मेरा वक्त कटता है
जैसे ही दरवाजे की घंटी बजती है
धड़कन जैसे तेज हो उठतीहैं
बस चेहरा देखा नहीं कि तेरा
आंखें लबों को सील सब बोल जाती है
माना मेरी मोहब्बत जिद्दी है
पर जाना तू है तो मेरी जिंदगी है
Comments
Post a Comment