अफसोस

अफसोस होता है मुझे की उनको अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाया
कि उन्हें अपने दिल का हर किस्सा सुनाया।

की उन्हें ख्वाबों से दूर हकीकत में सजाया
कि जमाने से दूर छिपाकर अपने दिल में बसाना।

कि खुद को इस कदर मजबूर कर लिया मैंने
की आंखें बंद हो या खली चेहरा सिर्फ उसी का नजर आया।

कि आज उलझन में हूं कुछ इस कदर कि तेरे साथ होने का
जिक्र करूं किसी से या तेरे जाने का अफसोस।

कि अक्सर तेरी बातों को याद कर मुस्कुरा दिन तो काट लिया करती हूं
कि रात की गहराई फिर सिकुड़ जाते हैं ये लब हर रोज।

कि वो कहता था मैं नहीं औरों जैसा कद्र करता हूं तेरी
कि मैं भी सुन शर्मा दिया करती थी मांगी मुराद हो तुम मेरी।

कि जब भी तन्हा सी हो उसके कंधे पर सर रखती थी
कि वो सर  सहला दिया करता माथे को चुम दिल बहला दिया करता था

कि वह मेरी फिक्र कुछ इस कदर दिखा दिया करता था
कोई और छु ना ले मुझे उसे दूर से ही हटा दिया करता था

कि मोहब्बत कम नहीं थी उसकी
कि गुस्से से देख आंखों से समझा दिया करता था

कि समझ नहीं आता अब मुझे तेरे संग बीते लम्हों
की नुमाइश करूं कि तेरे जाने का अफसोस।

Ⓒvineeta

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